भाखड़ा बांध
भाखड़ा बांध, सबसे अधिक ऊँचाई तथा सीधे ग्रेविटी वाला दुनिया का सबसे ऊँचा बांध है। यह नंगल कस्बे से लगभग 14 कि०मी० की दूरी पर नैना देवी तहसील में स्थित है। यह बांध पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण समझा जाता है। इस बांध को बनवाने का सर्वप्रथम विचार सर लुईस डेन, लेफ्रटीनेंट गोवर्नर पंजाब को आया था और इस सन्दर्भ में उन्होंने सुन्नी से बिलासपुर और बिलासपुर से रोपड़ तक की यात्रा की थी। इस बांध के बनाने की योजना धन सम्बन्धी समस्या के कारण आगे नहीं बढ़ सकी। सन् 1938-39 में पंजाब प्रांत के रोहतक और हिसार जिलों में भयानक अकाल पड़ा जिसके कारण अनेक लोगों एवं पशुओं को मौत का सामना करना पड़ा। भाखड़ा बांध को बनाने सम्बन्धी योजना को क्रियान्वित करने के लिए पुनः प्रयास किए गए किन्तु द्वितीय विश्व युद्ध के कारण यह योजना क्रियान्वित न की जा सकी।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात ही इस योजना को मार्च 1948 में क्रियान्वित किया जा सका। 17 नवम्बर, 1955 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री पं0 जवाहर लाल नेहरू ने भाखड़ा बांध की आधारशीला रखी। यह बांध अक्तूबर, 1962 को बनकर तैयार हो गया।
गोबिन्द सागर झील
सतलुज नदी पर भाखड़ा बांध बनने के कारण हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में गोबिन्द सागर नामक झील का निर्माण हुआ है। सिखों के 10वें गुरू श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी के सम्मान पर इस झील का नाम गोबिन्द सागर रखा गया है। अमेरिकी बांध निर्माता हार्बे साल्कम के निरीक्षण में इस बांध का कार्य 1955 में प्रारम्भ हुआ और यह बांध 1962 में बनकर तैयार हुआ। हार्बे साल्कम ने इंजीनियरिंग की कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया था, इसके बावजूद भी उनके बांध का प्रारूप/डिजाइन सफल साबित हुआ है। इस बांध में जल स्तर को बनाये रखने के लिए व्यास नदी के पानी को भाखड़ा-ब्यास लिंक के माध्यम से गोविन्द सागर झील में डाला गया है। भाखड़ा-ब्यास लिंक योजना का कार्य 1976 में सम्पन्न हुआ। गोविन्द सागर झील 90 कि०मी० लम्बे एवं 170 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली है। इस झील में अनेक प्रकार की जलक्रिड़ाओं व जल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है जैसे वॉटर स्कीयंग, वॉटर सेलिंग, क्याकिंग, वॉटर स्कूटर, रेसिंग इत्यादि। पर्यटन विभाग की ओर से इन खेलों का आयोजन पूर्णतः जल स्तर पर होता है।
न्यू बिलासपुर टाऊन
वर्ष 1963 में जब कहलूर प्रांत की राजधानी/मुख्यालय सुन्हाणी से बिलासपुर स्थानातरित की गई थी, तब यह पुराना बिलासपुर कस्बा अस्तित्व में आया था। वर्तमान समय में यह पुराना बिलासपुर कस्बा गोबिन्द सागर झील में डूब चूका है। नया बिलासपुर कस्बा पुराने बिलासपुर कस्बे से थोड़ा ऊपर ही स्थापित किया गया है। नये बिलासपुर कस्बे की ऊंचाई समुद्रतल से लगभग 670 मीटर है।
नया बिलासपुर कस्बा आधुनिक नगर योजना के मापदण्डों पर स्थापित किया गया है। यह भारतवर्ष का प्रथम सुनियोजित पहाड़ी कस्बा है। नया बिलासपुर कस्बा किरतपुर से लगभग 64 कि०मी० की दूरी पर चण्डीगढ़-मनाली रोड़ पर स्थित है। यह बिलासपुर जिले का मुख्यालय भी है।
प्रत्येक वर्ष मार्च महीने में इस कस्बे में नलवाड़ी मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में कुश्ती प्रतियोगिताओं के साथ-साथ अन्य मनोरंजक गतिविधियाँ का आयोजन भी किया जाता है। पंजाब के अनेक भागों से इस मेले में व्यापारियों द्वारा पशुओं को बेचने के उद्देश्य से लाया जाता है। इस स्थान पर शिमला, हमीरपुर, कांगड़ा, कुल्लु, मण्डी आदि स्थानों से बस के द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। इस जिले के प्रमुख पर्यटन स्थलों में श्री नैना देवी जी मन्दिर, रघुनाथ मन्दिर, गोपाल मन्दिर आदि प्रमुख हैं।
कन्दरौर पुल
अत्याधिक सुन्दर और मंत्रमुग्ध करने वाला कन्दरौर पुल बिलासपुर कस्बे से 8 कि०मी० की दूरी पर एन-एच-88 पर सतलुज नदी पर बनाया गया है। इस पुल के निर्माण का कार्य अप्रैल, 1959 में प्रारम्भ हुआ था और यह पुल 1965 में बनकर तैयार हुआ और इस पुल के निर्माण पर 28,12,998 रुपये खर्चा हुआ। इस पुल की लम्बाई 280 मीटर, चौड़ाई 7 मीटर और ऊंचाई 80 मीटर है। यह पुल विश्व के सबसे ऊंचे पुलों में से एक है। यह पुल बिलासपुर, घुमारवीं और हमीरपुर को एक दूसरे के साथ जोड़ता है। इस पुल का उद्घाटन तत्कालीन यातायात मंत्री श्री लाल बहादुर ने 1965 में किया था।