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पैराग्लाइडिंग

 

पैराग्लाइडिंग और हैंगग्लाइडिंग का इतिहास

पैराग्लाइडिंग

पैराग्लाइडिंग

हम में से बहुतों ने कभी न कभी उड़ने का सपना देखा ही है। मनोवैज्ञानिक इसे प्रतीकवाद से जोड़ते हैं पर कितने ऐसे मनोवैज्ञानिक हैं जो अपने आरामदायक कमरों और दफ्तरों को छोड़कर घाटियों को निहारते हैं तथा वहां बहती हवाओं को देखते हैं। हमारा मानना है कि नीले मखमली आकाश में उड़ने की तीव्र इच्छा अपने आप में एक ध्येय है और मनुष्य की हमेशा यह अभिलाषा रही है कि वह ऊपर उड़ रहे पक्षियों का पीछा करे।

भूतकाल में यह ज्वलन्त इच्छा उड़ने वाली मशीनों की कमी, धन के अभाव, समय के अभाव द्वारा रोक दी गई। आज हमारे पर नए तरीके, आधुनिक तकनीक कम लागत पर उपलब्ध् है जिससे कि हम प्रत्येक के लिए उड़ना आयान कर सकते हैं। पैराग्लाइडिंग तथा हैंगग्लाइडिंग ने इस सब को संभव कर दिया है तथा लम्बे समय से चले आ रहे सपने को साकार करने का अवसर भी प्रत्येक आम पुरूष एवं महिला को दिया है।

हम अदृश्य द्रव्य ;वायुद्ध में उड़ते हैं जिसे समझना जरूरी है क्योंकि तब ही हम उड़ने की क्षमताओं और सीमाओं को समझ पाऐंगे। एक बार कोई शुरूआती कौशलों को समझ जाए फिर उसमें ऊंचे और आगे उड़ने की तीव्र इच्छा अपने आप उत्पन्न होती है। इस तरह नवप्रशिक्षित पायलट एक नए आयाम में प्रवेश करता है जहां उसका सपना पूरा होता है।

आज हि०प्र० राज्य पैराग्लाइडिंग में देश भर में अगृणी भूमिका निभा रहा है। कोई भी वीलिंग कांगड़ा, सोलंग, मनाली, बंदला, बिलासपुर,  के आसमान में रंग-बिरंगे तितलियों, पैराग्लाइडिंग को उड़ते देख सकते है। इसका श्रेय राज्य सरकार मुख्यतः पर्यटन विभाग को जाता है जिसने की मुख्य भूमिका निभाई है राज्य में पैराग्लाइडिंग को बढ़ावा देने में।

बिलासपुर में पैराग्लाइडिंग

1994 से पहले हि०प्र० में शायद ही कोई पैराग्लाइडिंग या हैंगग्लाइड पायलट, चालक था सिवाय एक, रोशन लाल ठाकुर मनाली से, को छोड़कर जिन्होंने विदेशी पायलटों से उड़ने के कुछ कौशल सीखे थे, जो कि मनाली में आम तौर पर सैलानी के रूप में आते हैं। इस बीच आर०पी० गौतम जोकि केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल से कमाडैंट के रूप में रिटायर हुए थे, ने बंदला शिखर पर पैराग्लाइडिंग की सम्भावनाएं तलाशी। अपने सपने को सच करने के लिए उन्होंने शक्ति सिंह चन्देल, जोकि उस समय पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन विभाग के निदेशक थे, से सम्पर्क साधा, ताकि मदद ली जा सके न केवल बिलासपुर में पैराग्लाइडिंग को बढ़ाने की अपितु सम्पूर्ण हि०प्र० में। पर्यटन निदेशक जो स्वयं बिलासपुर से थे जिन्होंने रूचि ली और बंदला पर्वत को ‘टेक ऑफ’ स्थल घोषित किया। उन्होंने आर्थिक मदद भी प्रदान की बिलासपुर में पैराग्लाइडिंग कोर्स चलाने की। यह कोर्स एयरो एडवैंचर, बिलासपुर के अन्तर्गत श्री बूस मिल्स, न्यजीलैंड तथा अलैक्सी गौरिस्मो रूस के मार्गदर्शन में चला। इस तरह से पैराग्लाइडिंग नक्शे पर बिलासपुर आ गया।

बिलासपुर अन्य उड़ान स्थलों की तुलना में विशेष इसलिए है क्योंकि यह बिलिंग या मनाली की तुलना में आपको अधिक उड़ान समय आठ घण्टे देता है। यहां पर विस्तृत और सुरक्षित उतराव स्थल गोबिन्द सागर झील के तट, लुहणू पर है। प्रशिक्षण के नजरिए से भी बिलासपुर उत्तम है पूरे एशिया में। प्रशिक्षण कला कौशल ग्रंथ में कहा गया है कि पैराग्लाइडिंग के विभिन्न कौशलों के लिए विस्तृत जल स्थल अति आवश्यक है। शायद ही दूसरा कोई और स्थान हो जहां पर उतराव स्थल के साथ इतनी विशाल झील है । बिलासपुर सौभाग्यशाली है कि यहां पर वायु खेल का एक ही जगह पर आद्वितीय मिलन है ।